मेरी एक छिछोरी कहानी...
दोस्तो! यह मेरी एक ऐसी छिछोरी दास्ताँ है, कि आज भी जब मैं उस पल को याद करता हूँ, तो मुझे अपने पर ग्लानी होती है! लेकिन फिर यह सोचकर की अगर, वो सब एक जवान लड़का जवानी में नहीं करेगा, तो क्या बुढ़ापे में करेगा? यही सोचकर मैंने अपनी इस, एक छोटी सी छिछोरी दास्ताँ को लिखने का सोचा! और मुझे यकीन है कि, ऐसा छिछोरापन आपने भी, कभी-ना-कभी, किसी-ना-किसी के साथ किया होगा!

बात उस समय की है, जब मैं इंडस्ट्रियल सेलिंग में था, और मुझे इंडस्ट्रीज में मिलने के लिये दूर दराज के गाँव में इंडस्ट्रीज में जाना पड़ता था।

एक बार ऐसे ही मुझे कहीं, किसी जगह इंडस्ट्री में जाना था, तो मैंने बस पकड़ी और उस गाँव की और चल पड़ा. वहाँ से उस गाँव का रास्ता करीब चार घंटे का था! मुझे बैठने के लिये एक जगह मिल गयी, और मैं उस सीट पर बैठ गया।

करीब २ घंटे बाद, एक औरत, मेरे करीब आ कर बैठ गयी, बात करने पर पता लगा कि, उस वो उस गाँव में स्कूल में पढ़ाती थी! हम दोनों ने बस में बात करनी शुरू कर दी! मैंने अपने बारे में बताया, और वो अपने बारे में बता रही थी! वो शादीशुदा थी और वहीं पास के ही गाँव में जो करीब 30 किलोमीटर दूर था और बस से करीब 1 घंटा लगता था, रहती थी।

बात करते-करते मुझे ऐसा लगा कि, उसकी जांघ मेरी जांघ से सटी हुई थी, और मुझे कुछ गर्मी सी महसूस होने लगी, वो गर्मी इतनी अच्छी लगी कि, उसने मुझे कामुक बना दिया! मैंने अपने आप को आगे करके, आगे वाली सीट के पीछे, उपर की तरफ अपना सर रख दिया, और उसके पाँव को अपने पाँव से दबाना शुरू किया! मुझे आज भी याद है, उस वक़्त बस लोगो से खचा-खच भरी हुई थी, और मैं उसका पाँव अपने पाँव से दबा रहा था! वो कुछ अजीब सा महसूस करने लगी, जब मैंने उसकी तरफ देखा, तो उसने अपना मुह खिड़की की और कर लिया।

मैं उसके हाव-भाव देख कर समझ गया था, की वो uneasy महसूस कर रही थी. मैंने अपने आप को पीछे की और किया और सीधे होकर बैठ गया! मैं भी अपने में गर्मी महसूस कर रहा था! मैंने अपने दोनों हाथ बांधे, और एक तरफ की बाह को थोडा सा उपर उठाकर उसकी बाह पर रख दिया, ताकि किसी की नज़र मुझ पर ना पढ़े!

मेरे ऐसा करने पर जब उसने कोई ऐतराज़ नहीं किया, तो मैंने उसके वक्ष को अपनी बगल के नीचे दुसरे हाथ से छूना शुरू कर दिया, मुश्किल से कुछ ही मिनट्स हुए होंगे कि, उसका अपनी सीट पर थोडा सा आगे होना, अपनी टांगो को फैलाना, और अपने सर पर हाथ रख कर खिड़की की और देखना, बता रहा था कि, उसे भी ये सब अच्छा लग रहा था! मुझमे और गर्मी बढ़ रही थी, लेकिन मैंने अपने आप को काबू किया हुआ था, और वो अभी भी सीट पर उसी तरह से लगभग आधी लेटी हुई थी! कि, अचनक बस रुकी और वो औरत इस कदर इतनी फुर्ती से उठकर भागी कि, इससे पहले मैं, कुछ कह कहता, वो भीड़ के बीच से होती हुई, बस से उतर गयी. क्यूंकि उसका गाँव आ गया था।

मुझे, उस वक़्त अजीब सा लगा, लेकिन ठीक है, जवानी की हरकत वक़्त पर ही अच्छी लगती है! आज कभी कभी जब उस वाकया को सोचता हूँ, तो हँसी भी आती है, अपनी इस छिछोरी हरकत पर!


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